एक राजा हमेशा तनाव में रहता था।
एक दिन उनसे मिलने एक विचारक आया। उसने राजा से उसकी परेशानी पूछी तो वह बोला -मैं एक सफलतम राजा बनना चाहता हूँ, जिसे प्रजा का हर व्यक्ति पसंद करे।
मैंने अब तक अनेक सफल राजाओं के विषय में पढ़ा और उनकी नीतियों का अनुसरण किया, किन्तु वैसी सफलता नहीं मिली।
लाख प्रयासों के बावजूद मैं एक अच्छा राजा नहीं बन पा रहा हूँ।
राजा की बात सुनकर विचारक ने कहा - जब भी कोई वयक्ति अपनी प्रकृति के विपरीत कोई काम करता है, तो यही होता है।
राजा ने हैरानी जताते हुए कहा - मैंने अपनी प्रकृतिक के विपरीत क्या काम किया ?
विचारक बोला - तुम्हें बाकी लोगों पर हुक्म चलाने का अधिकार प्रकृति से नहीं मिला है। तुम जब बाकी लोगों की तरह साधारण जीवन बिताओगे, तभी आनंद मिलेगा।
जंगल में रहने वाले शेर की जान उसकी खाल की वजह से हमेशा खतरे में रहती है क्यूंकि वह बहुत कीमती होती है।
इसी वजह से वह रात में शिकार पर निकलता है, इस भी से कि सुन्दर खाल के कारण उसे कोई मार ही न डाले। शेर तो अपनी खाल नहीं त्याग
सकता है, किन्तु तुम अपनी सफलता के लिए स्वयं को राजा मानना छोड़ सकते हो।
जब तक स्वयं को राजा मानते रहोगे, दुःख ही पाओगे। राजा को विचारक की बात जाँच गई और उस दिन से वह सुखी हो गया। दरअसल अपेक्षा दुःख का कारण है।
इसलिए किसी से अपेक्षा न रखें और अपने कर्म करते हुए सहज जीवन जिएं तो निर्मल आनंद की अनुभूति सुलभ हो जाती है।
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